ना जाने क्यों तुझे छूने को जी करता है, ना जाने क्यों तुझे पाने को जी करता है, ना जाने क्यों तुझे छूने को जी करता है, ना जाने क्यों तुझे पाने को जी करता है,
यही है मानवता की चाह हर बालक का बचपन हो बचपन जैसा। यही है मानवता की चाह हर बालक का बचपन हो बचपन जैसा।
आखिर बेटी हूं ना उनकी। आखिर बेटी हूं ना उनकी।
कड़वी वाणी नहीं बोलना पैसे से प्यार नहीं तोलना। कड़वी वाणी नहीं बोलना पैसे से प्यार नहीं तोलना।
ज़हर ले कर अमृत बोलना कि कुछ भी छोड़ना नहीं। ज़हर ले कर अमृत बोलना कि कुछ भी छोड़ना नहीं।
रिश्तों को थोड़ा और नजदीक ले आता है 'पति का बटुआ'। रिश्तों को थोड़ा और नजदीक ले आता है 'पति का बटुआ'।